बना देता है मुझे , सबसे ज्यादा ख़ास
विशेषता की अनुभूति , बस तुझसे ही मिलती है
असीम तुष्टि की कली , तेरे मुख पे ही तो खिलती है
मुस्कराहट एक तेरी और हर तनाव हँस के टलता है
इस वृहद जगत में, स्वयं का जगत बस तुझसे ही मिलता है
तेरी उंगलिया चेहरे पे जब आकृति सी गढती है
एक निष्पक्ष निस्वार्थ प्रीत की ललक आत्मा में जगती है
मेरे सानिध्य के अतिरिक्त , और तेरा कोई अनुरोध नहीं
और तेरे सानिध्य में मुझे बोधता का भी बोध नहीं
अज्ञात थी जिस प्रेम से, वो प्रेम तूने ही तो है दिया
सम्पूर्ण हो गयी हू मैं , जब हँस के तूने है माँ कहा